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ग़म की रात

गम की रात
दोहे

काश मिलन होता अभी, जी उठती मृत देह।
आयी गम की रात है, बहता अँखियन मेह।।

तृषा बढ़ाती यह ऋतु, रोते कोमल नैन।
तुम बिन मेरे साजना, सदी बनी है रैन।।

काश मिलन होता अभी, भर लेती पी अंक।
भीख दर्श की माँगती, बनकर मैं अब रंक।।

चुप है चूड़ी भी पिया, पायल रहती मौन।
सूनी सी इस माँग में, तारे जड़ता कौन।।

काश मिलन होता अभी, सज जाता उर कक्ष।
पृथ्वी बन क्यों घूमती, मैं अपने ही अक्ष।।

प्रीति चौधरी"मनोरमा"
जनपद बुलंदशहर
उत्तरप्रदेश
मौलिक एवं अप्रकाशित।

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5 Comments

madhura

19-Aug-2023 02:38 PM

nice

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खूबसूरत भाव और अभिव्यक्ति बेहतरीन

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Varsha_Upadhyay

23-Jul-2023 10:55 PM

बहुत खूब

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